च्योदर खास अरिबरे नेपाल का उत्तरी हिमाली क्षेत्र मी बस्स्या शेर्पा जाति ला समुदाय मि बजायीन्या लोक बाजा हो।[१] यो बाजा डमरू जसा आकार को हुन्छ। बौद्ध धर्म मी च्योदर रे डमरू लाई धार्मिक साधना का यक साधन का रूप मी लियीन्छ। च्योदर खैर तथा कोइराल जात का काठ मी मृग, घोरड़ या बाकरा कि छला मोडिबरे बनाइन्छ। गुम्बा का लामाअन मन्त्र उच्चारण अरन्ज्याँ सद्दीसद्धि यै बाजा बजौनाहान्।

तामाङ समुदाय मी मान्स मर्या पाछा बौद्ध धर्म का लामा गुरू बठै फो अरिबरे मृतक कि आत्मा रे शरीर छुटेइ सक्या पाछा मर्या का लास लाइ घर है बाइर या लास लाइ पोल्ल लैजना है पैली “च्योई” अनिवार्य गरीन्छ। मृतक का लास लाइ भूत/प्रेत लाइ दान दीबरे पुण्य आर्जन गद्द्या कार्य को माध्यम भँण्या को च्योई गद्दु हो। च्योई गद्द्या बेला मी लामाअन ले मच्यिग/ठोइमा, नाग्मो/माताकाली का को क्रोध धारण का स्वरूप मी च्योदर/डमरू रे कक्लिङ बाजा बाजा बजाइबरे नृत्य अभिनय अभिनय गद्द्या गद्दाहान्।[२]

सन्दर्भअन सम्पादन

  1. "सीमित आदिवासी असीमित लोकबाजा". Sunday, 06/21/2009. Retrieved April 16, 2018. Check date values in: |date= (help)
  2. "तामाङ जातिको मृत्यु संस्कार "च्योई"मा लामाले गर्ने नाँच (भिडियो)". October 23, 2017. Retrieved April 16, 2018.